ज्यादातर घरों में पैतृक संपत्ति को लेकर अनेक तरह के विवाद सामने आते रहते हैं। ये विवाद अनियंत्रित होकर खतरनाक रूप ले सकते हैं, जिनमें कोर्ट-कचहरी के मामले, खून-खराबा और मारपीट तक शामिल हैं। इनको देखते हुए कानून में पैतृक संपत्ति को लेकर समय-समय पर कई बदलाव किए गए हैं।
पैतृक संपत्ति में कानूनी बदलाव
प्रॉपर्टी को लेकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई जजमेंट आ चुके हैं। कानूनी रूप से 2005 में एक बड़ा बदलाव किया गया था और इसके बाद भी कई छोटे-मोटे बदलाव हुए हैं।
प्रॉपर्टी में कानूनी अधिकार
यदि आप यह जानना चाहते हैं कि किसी भी प्रॉपर्टी में एक बेटे, पोते या पड़पोते का कितना कानूनी अधिकार है और वह इसे कैसे प्राप्त कर सकता है, तो इस लेख में पैतृक संपत्ति से जुड़े सभी अधिकार स्पष्ट किए जाएंगे।
प्रॉपर्टी के प्रकार
प्रॉपर्टी दो प्रकार की होती है:
पैतृक संपत्ति: पीढ़ी दर पीढ़ी पुस्तैनी तौर पर मिलने वाली संपत्ति।
अर्जित संपत्ति: व्यक्तिगत कमाई से प्राप्त संपत्ति।
पैतृक संपत्ति में पांच प्रमुख अधिकार
इस लेख में पैतृक संपत्ति में आपके पांच प्रमुख अधिकारों की चर्चा की गई है:
बराबर का अधिकार:
पैतृक संपत्ति में स्वतः अधिकार: पैतृक संपत्ति में सभी वारिसों का स्वतः ही बराबर-बराबर का अधिकार होता है। इसमें किसी भी कानूनी दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होती।
अर्जित संपत्ति में गार्डियन की आवश्यकता: अर्जित संपत्ति में 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को गार्डियन की आवश्यकता होती है। यह गार्डियन कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से नियुक्त होता है और उसकी निगरानी में ही संपत्ति के अधिकार प्राप्त किए जा सकते हैं।
मौखिक सहमति का महत्व: परिवार में मौखिक सहमति के माध्यम से भी बराबर का अधिकार स्थापित किया जा सकता है, लेकिन यह कानूनी मान्यता नहीं रखता।
वसीयत और टाइटल परिवर्तन:
वसीयत के माध्यम से अधिकार परिवर्तन: पैतृक संपत्ति का टाइटल यदि वसीयत के माध्यम से बदल जाए, तो वह संपत्ति अर्जित संपत्ति मानी जाएगी और उसमें वारिसों का अधिकार समाप्त हो जाता है।
वसीयत का कानूनी महत्व: वसीयत को कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त होती है और इसका टाइटल परिवर्तन संबंधित दस्तावेजों में दर्ज किया जाता है।
वसीयत की पंजीकरण प्रक्रिया: वसीयत को स्थानीय पंजीकरण कार्यालय में पंजीकृत कराना आवश्यक है ताकि उसका कानूनी महत्व बना रहे।
बेटियों के अधिकार:
2005 के बाद कानूनी बदलाव: 2005 के बाद, बेटी को भी प्रॉपर्टी में बेटे के बराबर अधिकार दिया गया है। यह बदलाव हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में संशोधन के रूप में लागू हुआ।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले: सुप्रीम कोर्ट ने 2005 से पहले या बाद में पिता की मृत्यु के बावजूद बेटी को बराबर अधिकार दिया है।
2005 से पहले के मामलों में अधिकार: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, यदि पिता की मृत्यु 2005 से पहले हुई हो, तब भी बेटी को बराबर का अधिकार मिलेगा।
हिस्से का विक्रय:
प्रॉपर्टी का बंटवारा किए बिना विक्रय असंभव: प्रॉपर्टी का बंटवारा किए बिना हिस्से को बेचा नहीं जा सकता।
पारिवारिक सहमति की आवश्यकता: बाकी पारिवारिक सदस्यों की सहमति और लिखित समझौता आवश्यक है।
लीगल बंटवारे की प्रक्रिया: प्रॉपर्टी का लीगल बंटवारा करने के लिए कोर्ट में पर्टिशन सूट दायर करना पड़ता है।
अवैध कब्जे का निवारण:
सिविल न्यायालय में वाद दायर करें: यदि परिवार के सदस्य अवैध कब्जा कर लेते हैं, तो सिविल न्यायालय में वाद दायर कर अपने अधिकार प्राप्त किए जा सकते हैं।
संरक्षक की आवश्यकता: यदि उम्र 18 साल से कम है, तो संरक्षक की आवश्यकता होती है।
कानूनी प्रक्रिया का पालन: कोर्ट में वाद दायर करने के बाद, कानूनी प्रक्रिया का पालन कर अपना हक और अधिकार प्राप्त किया जा सकता है।
निष्कर्ष
प्रॉपर्टी विवादों में कानूनी अधिकारों को समझना और उनका पालन करना आवश्यक है। यह लेख पैतृक संपत्ति में आपके कानूनी अधिकारों को स्पष्ट करता है और आपके सवालों का समाधान करता है। पैतृक संपत्ति के विभिन्न अधिकारों के बारे में जानकर आप अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं और सही कानूनी कदम उठा सकते हैं।
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